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विजन-वन-वल्लरी
पर |
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सोती
थी सुहागभरी-स्नेह-स्वप्न-मग्न- |
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अमल-कोमल-तनु-तरुणी
-जुही की कली, |
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दृग
बन्द किये, शिथिल-पत्रांक में। |
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वासन्ती
निशा थी; |
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विरह-विधुर-प्रिया-संग
छोड़ |
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किसी
दूर देश में था पवन |
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जिसे
कहते हैं मलयानिल। |
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आई
याद बिछुड़न से मिलन की वह मधुर बात, |
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आई
याद चाँदनी की धुली हुई आधी रात, |
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आई
याद कान्ता की कम्पित कमनीय गात, |
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फिर
क्या ? पवन |
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उपवन-सर-सरित
गहन-गिरि-कानन |
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कुञ्ज-लता-पुञ्जों
को पारकर |
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पहुँचा
जहाँ उसने की केलि |
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कली-खिली-साथ। |
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सोती थी, |
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जाने
कहो कैसे प्रिय-आगमन वह ? |
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नायक
ने चूमे कपोल, |
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डोल
उठी वल्लरी की लड़ी जैसे हिंडोल। |
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इस
पर भी जागी नहीं, |
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चूक-क्षमा
माँगी नहीं, |
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निद्रालस
वंकिम विशाल नेत्र मूँदे रही- |
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किम्वा
मतवाली थी यौवन की मदिरा पिये |
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कौन
कहे ? |
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निर्दय
उस नायक ने |
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निपट
निठुराई की, |
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कि
झोंकों की झड़ियों से |
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सुन्दर
सुकुमार देह सारी झकझोर डाली, |
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मसल
दिये गोरे कपोल गोल; |
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चौंक
पड़ी युवती- |
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चकित
चितवन निज चारों ओर पेर, |
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हेर
प्यारे को सेज पास, |
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नम्रमुख
हँसी, खिली |
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खेल
रंग प्यारे संग।
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